pregnancy hone ke lakshan

आमतौर पर पीरियड्स का मिस होना या उल्टी होने पर प्रेग्नेंसी होने की पुष्टि की जाती है। लेकिन ये जरूरी नहीं कि प्रेग्नेंसी होने पर हमेशा ही इस तरह के लक्षण दिखाई दें। पीरियड्स मिस होने पर सामान्यतः संदेह किया जाता है कि प्रेग्नेंसी हो सकती है। जिसकी पुष्टि  घर पर या डॉक्टर से जांच करवा कर की जाती है। कई बार पीरियड्स मिस किसी और वजह जैसे किसी तरह की कोई बीमारी या हार्मोन के बैलेंस बिगड़ने की वजह से भी हो सकते हैं। कुछ मामलों में पीरियड्स 15 दिन बाद आ जाते हैं जिसे लोग गलतफहमी से प्रेग्नेंसी समझ लेते हैं। कई बार तो महिलाओं को दो तीन महीने बाद प्रेग्नेंसी का पता चलता हैं। वह शुरूआती समय में होने वाले बदलाव जैसे की मूड़ स्विंग, कब्ज-डायरिया जैसे संकेतों से भी नहीं समझ पाती कि वह प्रेग्नेंट हैं।

शुरूआत में प्रेग्नेंसी में लक्षण के तौर घबराहट और तनाव होने लगता है। कुछ महिलाओं को पेट या यूटेरस में भारीपन महसूस होता है। प्रेग्नेंसी को पहचानना जरूरी है। कई महिलाएं ऐसी भी हैं जिनका प्रेग्नेंसी का प्लान भविष्य के लिए होता हैं। इसलिए वे बर्थ कंट्रोल करने वाली चीजों का इस्तेमाल करती हैं। लेकिन कई बार बर्थ कंट्रोल की चीजें अपना असर दिखाने में नाकामयाब हो जाती हैं। जिसके कारण महिलाओं को कुछ समय बाद प्रेग्नेंसी का पता चलता हैं। जिसकी वजह से गर्भपात कराने में परेशानी आती हैं। एक समय के बाद गर्भपात कराने के बुरे साइड इफेक्ट भी नजर आते हैं।

प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में दिखने वाले लक्षण — Pregnancy Ke First Week Me Dikhne Wale Lakshan

प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में दिखने वाले लक्षण:- प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में पीरियड्स का मिस होना पहला लक्षण है। ऐसा भी हो सकता है कि ब्लीडिंग हो मगर नाममात्र की। दोनों ही सूरतों में आपको डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए क्योंकि प्रेग्नेंसी हो या नहीं हो, पीरियड्स का मिस होना या कम ब्लीडिंग होना सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

पहले हफ्ते में महिला का जी मचलाना, उल्टी होना, बार बार पेशाब करने की जरूरत महसूस करना शुरूआती लक्षण के तौर पर दिखाई दे सकते हैं। अगर इस तरह की स्थिति में उल्टी हो और प्रेग्नेंसी होने की आपको जानकारी न हो तब भी उल्टी की परेशानी दूर करने के लिए एंटीबायोटिक न लें। इससे महिला और बच्चे दोनों को नुकसान हो सकता हैं। प्रेग्नेंसी होने के बाद महिला के व्यवहार में बदलाव आने लगता है। वह कभी खुश महसूस करती है तो कभी अचानक दुखीहो जाती है। 

कई बार तो महिला का मूड़ भी उखड़ा उखड़ा रहता है जिसे वो समझ नहीं पाती है। पहले हफ्ते में मुंह में कसैलापन भी महसूस होने लगता है। इससे किसी भी चीज का स्वाद नहीं आता बल्कि सिर्फ खट्टी चीजों का स्वाद ही आता है। प्रेग्नेंसी के बाद थकान होने लगती है, यहां तक कि पैर में सूजन हो जाती है। इसके साथ ही सिर दर्द भी रहता है। प्रेग्नेंसी में पहले हफ्ते में लक्षण दिखने पर आप डॉक्टर के पास जांच करवा कर प्रेग्नेंसी की पुष्टि कर सकती हैं। (और पढ़े: प्रेगनेंसी का पहला महीना — लक्षण, डाइट और सावधानियां )

प्रेग्नेंसी में दिखाई देने वाले अन्य लक्षण:- जब एग से स्पर्म फर्टिलाइज होता है तब हल्की सी ब्लीडिंग होती है। जिससे महिला को प्रेग्नेंट होने के बारे में भनक नहीं पड़ती है। इस समय महिला को ऐंठन भी महसूस होती है। प्रेग्नेंसी के पहले महीने में स्तन (Breast) कठोर हो जाते हैं और उनमें सूजन हो जाती है। कई बार स्तनों में दर्द भी होता हैं। शरीर में मेलेनिन (Melanin) बनने लगता है जिससे निप्पलों के रंग में बदलाव आने लगता है। मेलेनिन के कारण निप्पल का रंग गहरा हो जाता है। कंसीव करने के बाद नींद अनियमित हो जाती है और महिला को सोने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

प्रेग्नेंसी में प्रोजेस्टेरोन हार्मोन बढ़ जाता है, जिससे बार बार पेशाब आता है। प्रेग्नेंसी में महिलाएं वे चीजें खाना शुरू कर देती हैं जो उन्हें पहले पसंद नहीं थी। इस दौर में खाने-पीने की पसंद पूरी तरह से बदल जाती है। चूंकि बच्चे की वजह से प्रेग्नेंट महिला को ज्यादा डाइट की जरूरत होती है। इसलिए प्रेग्नेंट महिला की भूख बढ़ जाती है। कई बार तो उन्हें असमय ही भूख लगती हैं। प्रेग्नेंसी में महिला को सीने में जलन जैसे लक्षण दिखाई देते है। महिलाएं इस कारण से घबरा भी जाती हैं लेकिन प्रेग्नेंसी में सीने में जलन होना सामान्य है। 

प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ने से प्रेग्नेंट महिला को शुरूआती लक्षण के (pregnancy ke lakshan in first week in hindi) तौर पर कब्ज भी हो सकता है। हार्मोन के बदलाव के कारण प्रेग्नेंट महिला की सूंघने की शक्ति बढ़ जाती है। प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में यूटेरस में भ्रूण प्रत्यारोपित या कह सकते है कि अपनी जगह बनाता है जिससे पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है। पहले महीने में पीठ दर्द या रीढ़ की हड्डी में दर्द की भी संभावना रहती है। लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है। दर्द दूर करने के लिए डॉक्टर की सलाह से दवाई ली जा सकती है।

प्रेग्नेंसी के लक्षणों को देखते हुए प्रेगनेंसी को कैसे कंफर्म करें

  • यदि आप ऊपर दिए गए लक्षण से रूबरू हो रहे हैं तो घर में ही प्रेग्नेंसी टेस्ट या डॉक्टर से जांच करवा सकते हैं।
  • मार्केट में कई तरह के प्रेग्नेंसी किट मौजूद हैं। जिससे घर में ही प्रेग्नेंसी की जांच की जा सकती है। प्रेग्नेंसी किट में जांच पट्टी पर यूरिन का थोड़ा सा हिस्सा डालना होता है। जिसके बाद 5 मिनट का इंतजार करना होता है। अगर इसके बाद हल्की या गहरी गुलाबी लकीरें दिखाई देंगी। वैसे तो प्रेग्नेंसी किट पर सारे निर्देश दिए गए होते हैं। उसे पढ़ने के बाद आप बाकी चीजें समझ सकते हैं।
  • डॉक्टर प्रेग्नेंसी की पुष्टि करने के लिए ब्लड या यूरिन टेस्ट करवाते हैं। इन टेस्ट के रिजल्ट प्रेग्नेंसी किट के नतीजे से ज्यादा भरोसेमंद होते हैं।
  • जब डॉक्टर इन दो जांचो के बाद भी जांच के नतीजे से संतुष्ट नहीं हैं तब अल्ट्रासाउंड का सहारा लिया जाता है।

अगर गर्भपात का सोच रही हैं तो

अगर प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते के लक्षण दिखाई देने पर आप गर्भपात (abortion) की योजबना रही हैं तो इसके बारे में पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लेनी चाहिए। खुद से किसी तरह की दवाई न लें, बल्कि डॉक्टर से जांच करवाएं। जिससे कि डॉक्टर आपकी शारीरिक स्थिति के अनुसार गर्भपात की संभावनाएं बता सके।

  • ज्यादातर डॉक्टर महिला के शारीरि तौर पर स्वस्थ होने पर ही गर्भपात की बात पर सहमत होते हैं। गर्भपात किसी दवाई या सर्जरी के माध्यम से किया जाता हैं। दोनों ही सूरतों में महिला को बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है जिससे कमजोरी आ जाती हैं। 
  • डॉक्टर गर्भपात के बाद जिन चीजों को खाने और एक्टिविटी करने से मना करें, उसे न करें। ऐसा करने से यूटेरस में परमानेंट दिक्कत भी हो सकती है और इनफर्टिलिटी की संभावना बढ़ जाती है। (और पढ़े: फर्टिलिटी क्लिनिक में इलाज से पहले जरूर ध्यान दें ये 6 बातें और डॉक्टर से करें ये सवाल )
  • कई ऐसी परिस्थितियां भी हैं जिसमें महिला की शारीरिक स्थिति के अनुसार डॉक्टर गर्भपात करने की सहमति नहीं देते हैं।
  • अगर प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में लक्षण को न पहचाना जाए और समय बीतता जाए तो डॉक्टर गर्भपात करने से मना कर देते हैं। क्योंकि समय बीतने पर गर्भ में बच्चे का विकास एक स्टेज के पार हो जाता है।

प्रेग्नेंसी के पहले महीने में कैसे ध्यान रखें

प्रेग्नेंसी के पहले हफ्ते में लक्षण दिखने (pregnancy ke lakshan in first week in hindi) पर जैसे ही डॉक्टर से पुष्टि की जाती है। वैसे ही बच्चे के सपने और उसके लिए योजनाएं बननी शुरू हो जाती हैं। प्रेग्नेंसी में खाने का ध्यान जरूर रखें और याद रखें कि अनजाने में भी भारी सामान जैसे भरी हुई बाल्टी नहीं उठाना है।

  • प्रेग्नेंसी के पहले महीने में भारी एक्सरसाइज करना तो मना होता है लेकिन हल्की फूलकी एक्सरसाइज की जा सकती है। डॉक्टर की सलाह से प्रेग्नेंसी के पहले महीने में पिलेट्स एक्सरसाइज की जा सकती है। अगर आपको यह एक्सरसाइज नहीं आती तो किसी एक्सपर्ट से सीख सकती हैं। 
  • प्रेग्नेंसी में कुछ खास तरह के योगासन करने की सलाह दी जा सकती है। लेकिन अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार डॉक्टर से किसी भी आसन को करने के लिए इजाजत जरूर लें।
  • कब्ज और अपच न हो इसलिए फाइबर युक्त खाना खाएं।
  • डिहाइड्रेशन न हो इसलिए आठ से दस ग्लास पानी पिएं। ऐसा करने से डायरिया भी नहीं होगा।
  • डॉक्टर की सलाह से विटामिन सप्लीमेंट या विटामिन युक्त फूड जरूर लें।
  • खुद को खुश रखें और अच्छी किताबें पढ़ें। इससे मन खुश रहेगा और बच्चे पर भी अच्छा असर पड़ेगा।
  • डॉक्टर ने सिजेरियन डिलीवरी का कहा है तो घबराएं नहीं। अगर नॉर्मल डिलीवरी की भी गुंजाइश है तो ज्यादा तनाव लेने से यह खत्म हो जाएगी।
  • पहले महीने में लंबा सफर न करें, इससे मिसकैरिज की संभावना रहती है। 
  • हिल वाली सैंडल न पहनें, इससे यूटेरस पर असर पड़ता है। ऊंची सैंडल से पैर मुड़ने या जमीन पर गिरने का खतरा रहता है। 
  • प्रेग्नेंसी के पहले महीने में ज्यादा न झुकें, इससे पेट पर दबाव पड़ सकता है।
  • डॉक्टर की सलाह के बिना छोटी मोटी तकलीफों के लिए दवा न लें। 
  • सुबह की ताजा हवा में घूमें, इससे मन खुश रहेगा।
  • कॉस्मेटिक सामान इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतें, ज्यादा केमिकल वाले प्रोडक्ट का इस्तेमाल न करें।
  • हॉट टब बाथ या सॉना बाथ बिल्कुल ना लें। इसमें तापमान 70 डिग्री सेल्सियस से 100 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, जो मिसकैरिज का कारण बन सकता है।

और पढ़े

डिस्क्लेमर: यह ब्लॉग सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है| अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो कृपया डॉक्टर से परामर्श जरूर लें और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लें|