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फिशर और फिस्टुला को लेकर हमेशा लोगों के मन में कई तरह के प्रश्न और भ्रम होते हैं। प्रिस्टीन केयर के इस ब्लॉग में आज हम आपको फिशर और फिस्टुला के बीच के फर्क के बारे में विस्तार से बताने वाले हैं। इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद आप इन दोनों बीमारियों के बारे में विस्तार से समझ जाएंगे।     

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परिभाषा

फिशर किसे कहते हैं

फिशर एक मेडिकल कंडीशन है जिसमें गुदा के अंदर मौजूद म्यूकोसा लाइनिंग (अस्तर) में कट या दरार आ जाता है। भगंदर कठोर और बार-बार मलत्याग करने के कारण होता है। इस रोग के दौरान मल त्याग करते समय तेज दर्द, खुजली और ब्लीडिंग भी होती है। कुछ मरीजों को एनस के अंत में मांसपेशियों के रिंग में ऐंठन भी महसूस हो सकती है। ज्यादातर मामलों में फाइबरयुक्त भोजन का सेवन और सिट्ज बाथ करने पर फिशर अपने आप ही खत्म हो जाता है।

यह बीमारी छोटे बच्चों में बहुत आम है जो खुद ही ठीक हो जाती है , लेकिन यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। लंबे समय तक फिशर को नजरअंदाज करने या इसका इलाज न कराने से एनल फिस्टुला, एनल स्टेनोसिस, क्रोनिक एनल फिशर और एनल कैनाल टाइट होने का खतरा होता है।

एनल फिस्टुला किसे कहते हैं?

फिस्टुला यानी भगंदर एक गुदा संबंधी बीमारी है जिसमें मरीज के गुदा क्षेत्र में आँत और गुदा क्षेत्र के जुड़ जाने के कारण सुरंग बन जाता हैं। सुरंग में पस और रक्त एकत्रित हो जाता है, नतीजन गुदा क्षेत्र में दर्द, जलन, और सूजन के साथ-साथ तेज खुजली होनी भी शुरू हो जाती है जिसे बर्दाश्त करना मुश्किल होता है। इस बीमारी से पीड़ित मरीज को उठने-बैठने और अपने दैनिक जीवन जीवन के कामों को करने में बहुत परेशानी होती है।

मरीज को स्टूल पास करते समय कई तकलीफों का सामना करना पड़ता है। एनस के भीतर पस बन जाता है और स्टूल के साथ साथ खून भी आना शुरू हो जाता है। लंबे समय तक फिस्टुला को नजरअंदाज करने या इसका इलाज न कराने से एनल कैंसर और ट्यूबरक्लोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है और यह घातक हो सकता है। फिस्टुला के इलाज के लिए सबसे बेहतरीन लेजर सर्जरी को माना जाता है। क्योंकि लेजर सर्जरी की मदद से फिस्टुला की समस्या को बहुत कम समय में हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है। एनल फिस्टुला को दवाइयों या अन्य उपचार से ठीक नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यदि व्यक्ति ठीक हो भी जाता है तो वह कुछ दिनों बाद इससे दोबारा पीड़ित हो जाता है।

कारण

एनल फिशर के कारण

अगर समय से पहले फिशर के कारणों का पता लग जाए तो कुछ सावधानियों को बरतने के बाद बहुत ही आसानी से फिशर की रोकथाम की जा सकती है। फिशर कई कारणों से होता है। जिसमें पेट में गैस की शिकायत होना, लंबे समय से कब्ज होना, किसी दवा के सेवन से साइड इफेक्ट्स होना, फास्ट फूड्स या नियमित रूप से कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन करना, नियमित रूप से अधिक मात्रा में तैलीय पदार्थ या मसालेदार चीजों का सेवन करना, मैदा से बानी चीजों को अपने डाइट में शामिल करना, कम पानी पीना, लंबे समय तक एक जगह बैठेना, प्रेगनेंसी के दौरान कब्ज होना, अल्सरेटिव कोलाइटिस होना, इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज होना, लगातार डायरिया रहना, एनल स्फिंटर मसल्स का टाइट होना या यौन संचारित बीमारियों से ग्रसित होना शामिल है।

फिस्टुला के कारण

फिशर के कारणों की तरह भगंदर के भी कुछ कारण होते हैं जिनके बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए। क्योंकि इनकी सही जानकारी होने पर आप खुद को इस बीमारी से बचाने में कामयाब हो सकते हैं। भगंदर कई कारणों से होता है। लेकिन इसके मुख्य कारणों में क्रोहन नामक बीमारी का मरीज होना, टीबी या एड्स से पीड़ित होना, आंत की परत में सूजन होना, एनस के आस पास सर्जरी कराना, एनस के आसपास चोट लगना, सिगरेट और शराब जैसी दूसरी नशीली चोजों का सेवन करना, एनस में या उसके क्षेत्र के आसपास रेडिएशन ट्रीटमेंट कराना आदि शामिल हैं।

लक्षण

फिशर के लक्षण 

फिशर के लक्षण देखने के बाद डॉक्टर कुछ जाँच प्रक्रियाओं से फिशर की पुष्टि करते हैं। फिशर के लक्षणों में स्टूल पास करते समय बहुत तेज दर्द होना, एनल में सूजन होना, स्टूल के साथ खून आना, एनल के आसपास खुजली और जलन होना, एनस से पस निकलना, एनस के आसपास के स्किन में दरार दिखाई देना और एनल फिशर के पास स्किन पर गांठ या स्किन टैग दिखाई देना आदि शामिल हैं। अगर आप इनमें से किसी भी लक्षण को खुद में अनुभव करते हैं तो बिना देरी किए आपको डॉक्टर से मिलकर इसका जांच और उपचार करवाना चाहिए। 

फिस्टुला के लक्षण

आपको फिस्टुला है या नहीं इस बात का अंदाजा आप खुद में अनुभव कर रहे लक्षणों के आधार पर कर सकते हैं। जैसे फिशर के लक्षणों के आधार पर डॉक्टर मरीज की जांच करने के बाद बीमारी के होने या न होने की पुष्टि करते हैं, वैसे ही फिस्टुला के साथ भी है। फिस्टुला के लक्षणों में एनस में बार-बार फोड़ा होना, एनल क्षेत्र में दर्द और सूजन की शिकायत होना, एनस से पस और खून का रिसाव होना, एनस के आस आस एक गहरा या हल्का छेद और उससे बदबूदार पस का स्राव होना, पस के बार बार बाहर निकलने की वजह से जलन होना और पेट में कब्ज बना रहना आदि शामिल हैं। ऊपर बताए गए किसी भी लक्षण को खुद में अनुभव करने की स्थिति में आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

उपचार

फिशर का सामान्य इलाज

फिशर का इलाज करने के लिए बाजार में बहुत सारी दवाएं, क्रीम, घरेलू उपचार और दूसरे अन्य माध्यम मौजूद हैं। बहुत से लोग इन सभी चीजों का इस्तेमाल भी करते हैं। यदि व्यक्ति खान-पान में सुधार कर ले और फिशर का स्टेज सामान्य हो तो दवाइयों से ठीक किया जा सकता है।

लेकिन, यदि फिशर अपने चरम पर है यानी रोगी क्रोनिक फिशर से पीड़ित है तो इन सभी चीजों का इस्तेमाल करने से रोगी को थोड़ी देर के लिए फिशर के दर्द और जलन से आराम मिलेगा। जब इन दवाओं, क्रीम या घरेलू उपचारों का असर खत्म हो जाता है तब फिशर दोबारा हो जाता है और इससे जुड़ी परेशानियां भी जैसी की तैसी उनके सामने आकर खड़ी हो जाती हैं।

लेजर सर्जरी से फिशर का इलाज

क्रोनिक फिशर का इलाज के लिए बहुत सी दवाइयाँ मौजूद हैं लेकिन, यदि फिशर सामान्य स्टेज में नहीं है तो कोई भी दवा इसे हमेशा के लिए ठीक नहीं कर सकती है। दवाओं की मदद से मरीज को फिशर के दर्द, जलन और सूजन से थोड़े समय के लिए आराम जरूर मिलता है। लेकिन कुछ समय के बाद यह बीमारी फिर से वापस आ जाती है और परेशानियां शुरू हो जाती हैं।

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लेजर सर्जरी क्रोनिक फिशर का स्थायी इलाज है, क्योंकि इसके द्वारा फिशर को हमेशा के लिए जड़ से खत्म किया जा सकता है। फिशर की लेजर सर्जरी मॉडर्न मेडिकल इंस्ट्रूमेंट के जरिए की जाती है जिसके दौरान मरीज को दर्द और रक्स्राव नहीं होता है। फिशर की लेजर सर्जरी 30 मिनट की सर्जिकल प्रक्रिया है जो बहुत ही अनुभवी और कुशल सर्जन के द्वारा पूरी परफेक्शन की साथ की जाती है। सर्जरी की यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित और सफल है।

सर्जरी करने से पहले सर्जन मरीज की शारीरिक जांच करते हैं ताकि वे बीमारी और उसकी स्थिति को अच्छे से समझ सकें। इसमें ब्लड टेस्ट, एनल के क्षेत्र की जांच शामिल है। इसके अलावा, सर्जन रोगी को एनोस्कोपी, फ्लेक्सिबल सिग्मोइडोस्कोपी और कोलोनोस्कोपी कराने का भी सुझाव दे सकते हैं। जांच करने के बाद मरीज को जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है फिर सर्जरी की जाती है। 

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फिशर की लेजर सर्जरी के दौरान कट, टांके, जख्म और दाग नहीं बनते हैं। सर्जरी के बाद मरीज को उसी दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। सर्जरी के 48 घंटों के बाद मरीज पूरी तरह से फिट हो जाता है और अपने दैनिक जीवन के कामों को बहुत आराम से शुरू कर सकता है। लेजर सर्जरी के बाद या दौरान कट, रक्तस्राव, दर्द और इंफेक्शन न होने की वजह से मरीज को ठीक होने में बहुत कम समय लगता है। लेजर सर्जरी फिशर का बेस्ट इलाज है। इसके बाद फिशर के दोबारा होने का खतरा लगभग खत्म हो जाता है। 

फिस्टुला का नार्मल इलाज 

फिस्टुला  के लिए इलाज के बहुत सी दवाएं मौजूद हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह की कोई भी दवा इसको पूरी तरह से हमेशा के लिए ठीक नहीं कर सकती है। बहुत कम बार ऐसा हुआ है जब किसी दवा की मदद से फिस्टुला को ठीक किया गया हो। दवाएं फिस्टुला का स्थायी इलाज नहीं हैं। दवाओं की मदद से मरीज को फिस्टुला के दर्द, जलन और सूजन से थोड़े समय के लिए आराम जरूर मिलता है। लेकिन कुछ समय के बाद यह बीमारी फिर से वापस आ जाती है और परेशानियां शुरू हो जाती हैं। दवाओं के अलावा घरेलू नुस्खे, आयुर्वेद, होम्योपैथी , इंजेक्शन और जीवन शैली में बदलाव लाने के बाद भी ज्यादातर केसेस में फिस्टुला दोबारा हो जाता है। इसलिए समय पर फिस्टुला का स्थायी इलाज कराना जरूरी है। क्योंकि फिस्टुला के बाद एनल कैंसर और ट्यूबरक्लोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है।

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लेजर सर्जरी से फिस्टुला (भगंदर) का इलाज

लेजर सर्जरी इलाज का एक नया माध्यम है जिसके दौरान लेजर का इस्तेमाल करके भगंदर को हमेशा ठीक किया जाता है। यह प्रक्रिया मॉडर्न मेडिकल इंस्ट्रूमेंट के जरिए की जाती है। पारंपरिक सर्जरी (ओपन सर्जरी) की तुलना में यह ज्यादा संक्षिप्त, सुरक्षित और सफल प्रक्रिया  है। एनल फिस्टुला की लेजर सर्जरी बहुत ही अनुभवी और कुशल सर्जन द्वारा की जाती है। इस सर्जरी के दौरान या बाद में मरीज को बहुत कम परेशानी होती है। फिस्टुला एक गंभीर बीमारी है जिसका जल्द से जल्द स्थायी रूप से इलाज कराना जरूरी है। क्योंकि आपकी थोड़ी सी लापरवाही आपके जान का दुश्मन बन सकती है। दवा, मरहम, घरेलू उपचार या दूसरी तरकीबों या इलाज के उपायों का इस्तेमाल करके फिस्टुला को हमेशा के लिए ठीक करना मुश्किल है। 

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इन सभी चीजों का इस्तेमाल करने से आपको थोड़े समय के लिए आराम जरूर मिल जाएगा लेकिन इनका असर खत्म  होते ही यह बीमारी फिर जैसी की तैसी आपके पास आ जाएगी। इसलिए सर्जरी जरूरी है, सर्जरी की कई विधि हैं जिसमें लेजर सर्जरी सबसे उत्तम और सकारात्मक विधि है। मात्र कुछ मिनटों के अंदर ही लेजर सर्जरी की मदद से फिस्टुला को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है। यही कारण है कि मरीज से लेकर डॉक्टर तक हर कोई फिस्टुला से निजात पाने के लिए लेजर सर्जरी का चुनाव करता है। फिस्टुला का लेजर सर्जरी द्वारा इलाज करने के बाद इसके दोबारा होने का खतरा लगभग न के बराबर होता है।

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लेजर सर्जरी करने से पहले डॉक्टर आपकी शारीरिक जांच करते हैं ताकि वे आपके हेल्थ और बीमारी को स्थिति को अच्छे से समझ सकें। इसमें एनल के क्षेत्र की जांच, फिस्टुला से प्रभावित क्षेत्र की जांच, अल्ट्रासाउंड, एमआरआई और एनोस्कोपी शामिल है। जांच करने के बाद डॉक्टर आपको जेनेरल एनेस्थीसिया देते हैं फिर आपके फिस्टुला के लेजर सर्जरी की प्रक्रिया शुरू की जाती है।

लेजर सर्जरी की प्रक्रिया लगभग आधे घंटे में पूरी हो जाती है और उसी दिन आपको हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया जाता है। सर्जरी के दो दिन के बाद से आप अपने दैनिक जीवन के कामों को शुरू करने के लिए फिट हो जाते हैं। सर्जरी के दौरान आपको कट और टांके नहीं आते है, दर्द और रक्स्राव नहीं होता है। सर्जरी के बाद इंफेक्शन और जख्म बनने का खतरा भी लगभग न के बराबर होता है। 

एनल फिशर और भगंदर में अंतर – Fissure Aur Fistula Me Kya Antar Hai – 

एनल फिशरएनल फिस्टुला
गुदा क्षेत्र में दरारगुदा क्षेत्र में सुरंग
तेज दर्दतेज दर्द, पस एवं रक्तस्त्राव
कठोर मल के कारण या बार-बार मलत्याग  के कारणकिसी कारणवश गुदा क्षेत्र और आंत के अंतिम हिस्से के जुड़ जाने के कारण
शुरूआती स्टेज में दवा और अन्य जीवनशैली में परिवर्तन से उपचार संभवइलाज के लिए सर्जरी की आवश्यकता
इन्फेक्शन होने का कम खतराइन्फेक्शन होने का अधिक खतरा

फिशर और फिस्टुला में कुछ चीजें सामान्य होती हैं और कुछ चीजें बिलकुल एक-दूसरे से अलग होती हैं। जहां फिशर से पीड़ित मरीज के एनस में दरारें होती हैं वहीं फिस्टुला से पीड़ित होने की स्थिति में सुरंग का उद्घाटन होता है। फिशर में बहुत दर्द होता है, लेकिन फिस्टुला में  दर्द के साथ एनल क्षेत्र से पस का स्राव होता है। फिशर दस्त और मल त्याग के दौरान अत्यधिक दबाव डालने के कारण होता है लेकिन फिस्टुला मोटापा, लंबे समय तक एक जगह बैठने या क्रोहन नामक बीमारी से पीड़ित होने के कारण होता है। #difference between piles, fissure and fistula in hindi 

फिशर का इलाज कुछ हद तक दवा से किया जा सकता है तथा सर्जिकल प्रक्रिया जैसे की लेटरल स्फिनक्टेक्टोमी की जरूरत पड़ती है लेकिन फिस्टुला का दवा से इलाज करना मुश्किल है। फिस्टुला का पता लगाने के लिए एमआरआई या सोनोफिस्टुलग्राम की जरूरत पड़ती है। दोनों ही बीमारियों की स्थिति में फाइबर से भरपूर आहार का सेवन करने का सुझाव दिया जाता है।

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डिस्क्लेमर: यह ब्लॉग सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है| अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो कृपया डॉक्टर से परामर्श जरूर लें और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लें|