प्रेग्नेंसी के दौरान हर महिला के मन में कई सवाल उठते हैं। यह सवाल तब और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब महिलाएं पहली बार गर्भ धारण करती हैं। यदि आपके मन में भी ऐसे ही कुछ प्रश्न हैं, तो आप हमारे सर्वश्रेष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं। हमारे सभी डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी के साथ साथ सी-सेक्शन सर्जरी का भी विशेष अनुभव रखते हैं। सी-सेक्शन के मुकाबले नॉर्मल डिलीवरी के कई फायदे हैं, जिनके बारे में हम आपको बताने वाले हैं। अभी अपना परामर्श बुक करें और नॉर्मल डिलीवरी के संबंध में हमारे विशेषज्ञों से बात करें।
प्रेग्नेंसी के दौरान हर महिला के मन में कई सवाल उठते हैं। यह सवाल तब और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं जब ... और पढ़ें
निशुल्क परामर्श
मुफ्त कैब सुविधा
नो-कॉस्ट ईएमआई
बीमा क्लेम में सहायता
सिर्फ एक दिन की प्रक्रिया
यूएसएफडीए द्वारा प्रमाणित
Choose Your City
It help us to find the best doctors near you.
बैंगलोर
चेन्नई
कोयंबटूर
दिल्ली
हैदराबाद
कोच्चि
कोलकाता
मुंबई
नोएडा
पुणे
तिरुवनंतपुरम
विशाखापट्टनम
दिल्ली
गुडगाँव
नोएडा
अहमदाबाद
बैंगलोर
प्रेगनेंसी के दौरान एक महिला के शरीर में बहुत सारे बदलाव आते हैं, जो गर्भावस्था के अलग अलग चरण में बदलते जाते हैं। प्रसव के दौरान भी महिलाओं के जीवन में कुछ बदलाव होते हैं, जो संकेत देते हैं कि वह नॉर्मल डिलीवरी के लिए तैयार हैं। महिला के द्वारा प्राकृतिक रूप से बच्चे की जन्म की प्रक्रिया को नॉर्मल डिलीवरी कहा जाता है। आसान भाषा में कहा जाए तो इस प्रक्रिया में बच्चा प्राकृतिक तरीके से महिला की योनि से बाहर आता है जो सिजेरियन डिलीवरी के बिल्कुल विपरीत होता है। किसी प्रकार की मेडिकल समस्या न होने पर महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी के माध्यम से बच्चे को जन्म दे सकती हैं। यह शिशु के जन्म का सबसे आम तरीका है।
सामान्यतः शिशु का जन्म नॉर्मल डिलीवरी से ही कराया जाता है। लेकिन जब गर्भावस्था या फिर प्रसव के दौरान महिलाओं को कोई समस्या नजर आती है, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ सिजेरियन डिलीवरी की सलाह दे सकते हैं। कई बार महिलाएं स्वयं ही सिजेरियन डिलीवरी का चुनाव करती हैं। ऐसा होने की संभावना बहुत कम होती है। बच्चे के जन्म के लिए नॉर्मल डिलीवरी बच्चे के स्वास्थ्य और मां को जल्द ठीक करने में मददगार होती है।
नॉर्मल डिलीवरी एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसके कारण महिलाओं और उनके बच्चों दोनों को ही जान का खतरा बिल्कुल नहीं होता है। यदि मां को गर्भावस्था के दौरान कोई समस्या नहीं थी और प्रेगनेंसी के दौरान कोई जटिलता भी उत्पन्न नहीं हुई और बच्चे का सिर योनि की तरफ स्थित था, तो बिना किसी समस्या के महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है।
वास्तविक कीमत जाननें के लिए जानकारी भरें
नार्मल डिलीवरी दो प्रकार की होती हैं, जैसे –
इस प्रक्रिया में महिला को दर्द निवारक दवाएं नहीं दी जाती है और वह प्रसव के दौरान उत्पन्न होने वाली सभी संवेदनाओं को महसूस करती हैं और सहती है। इस प्रसव के दौरान महिलाएं दर्द और दबाव का निरंतर अनुभव करेंगी। जैसे ही शिशु जन्म नलिका में नीचे की ओर उतरता है, तो महिलाएं संकुचन के दौरान निरंतर दबाव का अनुभव करती हैं और साथ ही दबाव में वृद्धि भी महसूस करती हैं। महिला को ऐसा महसूस होगा कि उन्हें मल त्याग करने की इच्छा हो रही है।
यदि महिला एपीड्यूरल दवा का चयन करती हैं, तो प्रसव के दौरान महसूस की जा रही संवेदनाएं दवा की प्रभावशीलता पर निर्भर करती है। यदि दवा ठीक से तंत्रिकाओं को सुन्न करती हैं, तो महिलाओं को प्रसव के दौरान कुछ भी महसूस नहीं होता है। यदि दवा का प्रभाव कम होता है, तो प्रसव के दौरान महिलाओं को थोड़ा बहुत दर्द होता है।
स्वस्थ महिलाएं जिन्हें कोई भी समस्या नहीं है वह नॉर्मल डिलीवरी का चुनाव कर सकती हैं। सक्रिय जीवन शैली, सामान्य ब्लड प्रेशर (रक्तचाप) और भ्रूण की स्थिति (पोजीशन) संकेत करती है, महिलाएं नॉर्मल डिलीवरी का विचार कर सकती हैं या चुनाव कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त योनि से प्रसव के कुछ और लक्षण भी है, जिसके बारे में नीचे बताया गया है –
बच्चेदानी में भ्रूण तरल पदार्थ की थैली के अंदर होता है, जिसको तोड़कर ही वो जन्म लेता है, लेकिन कई बार प्रसव से पूर्व ही द्रव से भरी थैली खुल जाती है। इस अवस्था में महिला को तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
नॉर्मल डिलीवरी एक प्राकृतिक प्रसव प्रक्रिया है, जिसका चुनाव हर महिला के द्वारा अक्सर किया जाता है। कुछ मामलों में नॉर्मल डिलीवरी के दौरान समस्या उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण सी-सेक्शन की तरफ महिला को अग्रसर होना पड़ता है। इससे बचने के लिए महिलाओं को निम्नलिखित दिशा-निर्देश का पालन करना चाहिए –
भोजन और जीवनशैली से जुड़े सुझाव
Post-Surgery Follow-Up
मुफ्त कैब सुविधा
24*7 सहायता
नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया तीन चरणों में होती है। चलिए सभी को एक एक करके समझते हैं:-
इस चरण को डाइलेशन का चरण भी कहते हैं। इस चरण में संकुचनों की वजह से ग्रीवा (सर्विक्स) धीरे-धीरे खुलने लगती है। ग्रीवा बच्चेदानी की गर्दन को कहा जाता है। इस चरण के दौरान मां को पेल्विक (श्रोणि) पर अतिरिक्त दबाव और पीठ दर्द का अनुभव हो सकता है, जिसके पीछे का कारण संकुचन होता है। जो महिलाएं अपने पहले संतान को जन्म देने वाली होती हैं, उनके लिए यह अवधि 7 से 8 घंटे से लेकर 13 घंटे या उससे अधिक तक हो सकती है। पहले चरण को तीन अलग अलग भाग में बांटा गया है, जिसमें से दो है शुरुआती प्रसव (Early labor) और सक्रिय प्रसव (Active labor)। इसके बाद महिलाओं को ग्रीवा में तेज संकुचन और दर्द का अनुभव होता है जो दूसरे भाग का संकेत देता है।
इसके अतिरिक्त एक और चरण भी है, जिसे अंग्रेजी में प्रीलेबर या लेटेंट फेज कहा जाता है। यह चरण तब शुरू होता है, जब महिला का शरीर प्रसव के पहले चरण के लिए तैयार हो रहा होता है।
इस चरण में ही संतान जन्म लेता है। यह तब शुरू होता है जब ग्रीवा पूरी तरह खुल जाता है और शिशु के जन्म के साथ यह चरण समाप्त हो जाता है। इस चरण में संकुचन बहुत तेज होता है। वहीं मां को डॉक्टर लगातार सलाह देते हैं कि वह बच्चे को लगातार धक्का दें या पुश करें। प्रक्रिया के दौरान महिला को पूरी तरह से प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वह होश में रहे और बच्चे को गर्भाशय ग्रीवा की तरफ पुश करे। कुछ मामलों में डॉक्टर सक्शन डिवाइस का भी प्रयोग करते हैं।
तीसरे चरण का संबंध प्लेसेंटा से होता है। इस चरण की शुरुआत शिक्षु के जन्म के साथ ही हो जाती है। इस चरण में भी मां को संकुचन का अनुभव होता रहता है, लेकिन इसकी तीव्रता पहले के मुकाबले कम होती है। यह संकुचन प्लेसेंटा को गर्भाशय से अलग करने और बाहर निकालने में मदद करते हैं। डॉक्टर फिर सावधानी से जांच करते हैं कि यह पूरी तरह से बाहर निकल गया है या नहीं।
सिजेरियन डिलीवरी के मुकाबले नॉर्मल डिलीवरी के बहुत सारे लाभ है, जिसके कारण बहुत सारी महिलाएं इस प्रक्रिया का चुनाव करती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख फायदों के बारे में नीचे बताया गया है:-
हालांकि नॉर्मल डिलीवरी एक सुरक्षित प्रक्रिया है, लेकिन इसमें कुछ जोखिम और जटिलताएं भी होती हैं, जो प्रसव से पहले या बाद में हो सकती हैं। चलिए कुछ जटिलताओं को समझते हैं –
यौनि प्रसव के बाद, एक मां के लिए अपने स्वास्थ्य की उचित देखभाल करना बहुत महत्वपूर्ण है। मुख्य रूप से उन्हें अपने आहार और जीवनशैली में बदलाव करने की आवश्यकता होगी। आमतौर पर, डॉक्टर बच्चे के जन्म के बाद महिला को आहार और जीवनशैली में बदलाव करने की सलाह देते हैं। हमने नीचे कुछ बदलावों के बारे में विस्तार से बताया है:-
नॉर्मल डिलीवरी या फिर योनि प्रसव के बाद महिलाओं को रिकवरी रूम में ट्रांसफर कर दिया जाता है। वहां प्रसव के बाद उनकी देखभाल की जाती है। मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य की निगरानी की जाती है। नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिलाएं जल्द ठीक हो जाती है। यहां एक बात का खास ख्याल रखना होगा कि हर महिला के लिए रिकवरी का समय अलग अलग हो सकता है। निम्न चरणों में नॉर्मल डिलीवरी के बाद महिला की देखभाल की जाती है-
एक महिला के शरीर में प्रसव से पहले और बाद में कई परिवर्तन आते हैं, जन्म देने के बाद भी महिला के शरीर में कई बदलाव देखने को मिलते हैं जैसे –
भारत में योनि में प्रसव के इलाज का खर्च कई कारकों के द्वारा प्रभावित होता है, जैसे – चयनित शहर, अस्पताल की पसंद और अतिरिक्त सुविधाओं इत्यादि। इस प्रक्रिया का खर्च औसतन 15,000 रुपये से 40,000 रुपये तक हो सकता है। हालांकि, यह सिर्फ एक अनुमान है, और वास्तविक लागत हर महिला के लिए अलग अलग हो सकती है। इलाज में लगने वाले सटीक खर्च का पता डॉक्टर के साथ परामर्श के दौरान चल सकता है। इस पूरे प्रक्रिया में लगने वाले खर्च को कई कारक प्रभावित कर सकते हैं जैसे –
यदि आप प्रसव में लगने वाले खर्च के संबंध में किसी जानकारी की तलाश में है, तो आप हमारे सर्जन से संपर्क कर सकते हैं।
हां, भारत में, बीमा कंपनियां अपनी पॉलिसियों में गर्भावस्था से संबंधित खर्चों को कवर करती हैं। कई बीमा कंपनियां विशेष रूप से तैयार की गई मातृत्व बीमा योजनाएं अपने पॉलिसी होल्डर को देती हैं, जो महिलाओं के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।
कुछ लोग इस प्रकार की पॉलिसी स्टैंड-अलोन पॉलिसी के रूप में खरीदती हैं, जबकि अन्य इसे अपनी मौजूदा पॉलिसी में ऐड-ऑन बीमा के रूप में शामिल करते हैं। यह अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान करके किया जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यदि महिला पहले से ही गर्भवती है, तो हो सकता है कि नई पॉलिसी में इस वर्तमान गर्भावस्था को न कवर किया जाए। आम तौर पर इस प्रकार की पॉलिसी में 3 से 4 साल का वेटिंग पीरियड होता है।
मातृत्व बीमा (Maternity policy) नॉर्मल और सिजेरियन-सेक्शन दोनों डिलीवरी के लिए कवरेज प्रदान करती है। कुछ बीमा कंपनी अपनी पॉलिसियों के तहत प्रसव से पहले और बाद के खर्चों और नवजात शिशु के कवरेज के अलावा जटिलताओं के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने के खर्च को भी कवर करती है। हालांकि, अलग अलग बीमा कंपनियों के द्वारा अलग अलग पॉलिसियों के लिए अलग अलग कवरेज राशि प्रदान की जाती है। अधिक जानकारी के लिए हमारे बीमा प्रदाता से संपर्क करना चाहिए।
सवाल पूछना हमेशा ही एक अच्छा विकल्प साबित होता है। यदि नॉर्मल डिलीवरी से पहले महिलाएं प्रक्रिया से संबंधित अपने सवालों के जवाब ढूंढती हैं, तो इसका सीधा लाभ उन्हें भविष्य में मिलेगा। तैयारी सुनिश्चित करने के लिए डिलीवरी से पहले कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गए हैं, जो महिलाओं को योनि द्वारा प्रसव से पहले स्त्री रोग विशेषज्ञ से पूछने चाहिए –
सामान्य तौर पर, पहली बार मां बनने वाली महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी में करीब सात से आठ घंटे का समय लगता है, जबकि दोबारा मां बनने पर यह समय कम हो जाता है। गर्भाशय ग्रीवा के फैलाव के आधार पर डिलीवरी का समय कम या ज्यादा हो सकता है। हर महिला की स्थिति अलग अलग होती है। अगर डिलीवरी में समय कम या ज्यादा लगे, तो घबराएं नहीं। अपने डॉक्टर की बात सुने और उनकी बातों का सही से पालन करें।
अधिकांश महिलाओं के लिए योनि प्रसव एक दर्दनाक स्थिति है। योनि के माध्यम से बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी के दौरान अक्सर पेट, कमर और पीठ में तेज ऐंठन और तेज दर्द का अनुभव होता है। हर महिला का शरीर अलग अलग होता है, जिसके कारण उनके दर्द की तीव्रता भी अलग अलग हो सकती है।
नॉर्मल डिलीवरी या योनि से प्रसव के बाद, संबंध बनाने के लिए महिलाओं को कम से कम 6 से 8 सप्ताह तक की प्रतीक्षा करनी चाहिए। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि डिलीवरी के बाद महिलाओं की योनी के ऊतक पतले और संवेदनशील हो जाते हैं। दोबारा संभोग शुरू करने से पहले योनि, गर्भाशय और गर्भाशय ग्रीवा को अपने सामान्य आकार में लौटने और ठीक होने का समय देना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। जटिलताओं से बचने के लिए योनि से प्रसव के बाद सेक्स करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करने की सलाह दी जाती है।
शोध के अनुसार, योनि से प्रसव कराने वाली लगभग 70% महिलाओं को सामान्य प्रसव के बाद टांके लगाए जाते हैं। आमतौर पर, सामान्य प्रसव के बाद टांके को तीन परतों की आवश्यकता होती है। सामान्य प्रसव के बाद आवश्यक टांको की संख्या मामले की गंभीरता के आधार पर भिन्न हो सकती है।
अधिकांश मामलों में सामान्य प्रसव के 2 से 3 दिनों के भीतर ही छुट्टी दे दी जाती है। हालांकि, अस्पताल में रहने की अवधि माँ और बच्चे के स्वास्थ्य के आधार पर भिन्न हो सकती है।
सामान्य तौर पर, नॉर्मल डिलीवरी को एक सुरक्षित प्रक्रिया की सूची में रखा जाता है। दूसरी ओर, सी-सेक्शन डिलीवरी कुछ जोखिमों से जुड़ी होती है। हालांकि, कई मामलों में सी-सेक्शन एक आवश्यक प्रक्रिया मानी जाती है। ऐसा अक्सर तब होता है, जब मां के स्वास्थ्य को समस्या होती है।
बहुत से अस्पताल या नर्सिंग होम दर्द रहित प्रसव के बारे में प्रचार करते हैं। इसका मतलब यह है कि वे आपको एपिड्यूरल देंगे, जो कि दर्द से राहत का एक प्रभावी विकल्प है। और इससे दर्द काफी हद तक कम हो जाता है।
Priya Kapoor
Recommends
Dr Dandamudi helped me during my pregnancy journey, especially in the high-risk months. Her calm way of handling complications kept me stress free. I will forever be grateful for her guidance.
Rupal Mehta
Recommends
Dr. Dandamudi supported me all through my pregnancy. Her advice on diet, exercise, and small lifestyle things made a big difference. My delivery experience was also smooth.
Shreya Malhotra
Recommends
She is the most caring doctor I have met. Went to her for pregnancy care and every checkup felt like talking to a family member. Always reassured me at every step.
Aparna Reddy
Recommends
For pregnancy monitoring by Dr. Swarna Sree. She made me feel safe and supported. A lil long wait, but worth cuz she’s that thorough.
Radhika Meena, 31 Yrs
Recommends
From the first visit till my delivery, Sheetla Hospital was there with me. Dr. Surbhi is calm and very good with patients. Highly recommeded to be moms.
Pushpa Bansal
Recommends
.Pristyn Care's pregnancy care team was compassionate and attentive. They made sure I felt safe and reassured at every step of my pregnancy..