आईवीएफ एक जटिल प्रक्रिया है, जो कई चरणों में पूरी होती है। इसकी सफलता दर हर महिला के लिए अलग-अलग होती है और कई बार महिला को एक से अधिक आईवीएफ साइकिल की जरूरत पड़ती है।
इसलिए आईवीएफ उपचार शुरू करने से पहले डॉक्टर महिला को इससे जुड़े दुष्प्रभाव, लागत, सफलता दर आदि के बारे में बताते हैं।
इसके बाद ब्लड सैंपल लिया जाता है और महिला के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। इस दौरान पुरुष के वीर्य का भी मूल्यांकन किया जाता है और यदि आवश्यकता पड़ती है तो डोनर स्पर्म की भी मदद ली जा सकती है।
जब महिला मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से दुरुस्त होती है तो आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू किया जाता है। एक आईवीएफ साइकिल में मुख्य रूप से 6 चरण होते हैं-
चरण 1 – ओवेरियन स्टिमुलेशन
आमतौर पर महिला का अंडाशय हर महीने एक अंडे का उत्पादन करता है। आईवीएफ की प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए एक से अधिक अंडे की आवश्यकता होती है।
इसलिए डॉक्टर महिला के अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए कुछ हार्मोनल इंजेक्शन और दवाइयां देंगे। इन दवाइयों के उपयोग से अंडों की संख्या बढ़ जाएगी। अंडे फॉलिकल में पाए जाते हैं।
नोट- फॉलिकल तरल पदार्थ से भरी एक एक पतली थैली है, जो अंडाशय में पाई जाती है।
ओवेरियन स्टिमुलेशन दो तरह से किया जा सकता है-
- लॉन्ग-प्रोटोकॉल स्टिमुलेशन – ओवरी को उत्तेजित करने वाले हार्मोनल इंजेक्शन और दवाइयां 4 से 5 सप्ताह तक दिए जाएंगे।
- शार्ट-प्रोटोकॉल स्टिमुलेशन – ओवरी को उत्तेजित करने वाले हार्मोनल इंजेक्शन और दवाइयां 5 से 9 दिन तक दिए जाएंगे।
डॉक्टर किस प्रक्रिया का चयन करेंगे यह महिला के प्रजनन स्वास्थ्य और उम्र पर निर्भर करता है। इस प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर समय-समय पर अल्ट्रासाउंड और ब्लड चेकअप करते रहेंगे।
चरण 2 – ट्रिगर इंजेक्शन
जब फॉलिकल की संख्या और आकार बढ़ जाएगा, तब ओवेरियन स्टिमुलेशन के लिए दी जाने वाली दवाइयां रोक दी जाएंगी और महिला को एग रिट्रीवल के लिए तैयार करने के लिए ट्रिगर इंजेक्शन (ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन ) दिया जाएगा।
यह इंजेक्शन अंडों को मेच्योर बनाकर, उन्हें फॉलिकल वाल से ढीला करेगा। ट्रिगर इंजेक्शन देने के 34 से 36 घंटे बाद एग रिट्रीवल की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
नोट- ट्रिगर इंजेक्शन देने के 36 घंटे बाद अंडे ओवुलेशन के लिए तैयार हो जाएंगे, इसलिए इंजेक्शन लेने का सही समय नोट कर लें और एग रिट्रीवल के लिए क्लीनिक पर सही समय पर पहुंच जाएं।
चरण 3 – एग रिट्रीवल और सीमेन कलेक्शन
आपके आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर एग रिट्रीवल की प्रक्रिया शुरू करेंगे, इसमें अंडे को अंडाशय से बाहर निकाला जाएगा। यह प्रक्रिया नीचे दिए गए स्टेप्स में पूरी होगी-
- आपको हल्का बेहोश किया जाएगा और दर्द की दवा दी जाएगी
- एक अल्ट्रासाउंड प्रोब (डिवाइस) को योनि के अंदर डाला जाएगा, इससे फॉलिकल को पहचानने में मदद मिलेगी
- अब एक पतली सुई को योनि के रास्ते फॉलिकल तक ले जाएंगे
- सुई की मदद से एक-एक करके सभी अंडे फॉलिकल से बाहर निकाल लिए जाएंगे
- पूरी प्रक्रिया में 20 से 30 मिनट लगेगा
एग रिट्रीवल के बाद महिला को हल्का फुल्का दर्द और ऐंठन हो सकता है, इसलिए डॉक्टर उसे एक घंटे तक अस्पताल में रहने को कहेंगे। यदि महिला कोई जॉब करती है तो उसे एक दिन की छुट्टी लेकर आराम करने को कहा जाएगा।
एग रिट्रीवल वाले दिन ही पुरुष को सीमेन निकालकर देना पड़ेगा। इसके लिए फर्टिलिटी क्लीनिक में एक अलग कमरा होगा जहां पुरुष हस्तमैथुन करके अपने सीमेन को एक डिब्बी में भरकर दे देगा।
कई मामलों में पुरुष के वृषण से वीर्य निकालने के लिए टेस्टिकुलर एस्पिरेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में सीमेन को निकालने के लिए डॉक्टर नीडल और सिरिंज की सहायता लेते हैं।
चरण 4 – फर्टिलाइजेशन या इन्सिमिनेशन
सीमेन सैम्पल प्राप्त करने के बाद डॉक्टर उसे धोकर, उसमें मौजूद सारी अशुद्धियाँ दूर करेंगे, इससे फर्टिलाइजेशन की संभावना बढ़ जाती है। अब अण्डों और स्पर्म को इनक्यूबेटर में रखकर अण्डों को फर्टिलाइज करेंगे।
आमतौर पर यदि स्पर्म की गुणवत्ता अच्छी है तो लगभग 60 से 70 प्रतिशत अंडे फर्टिलाइज हो जाएंगे। यदि स्पर्म क्वालिटी अच्छी नहीं है तो डॉक्टर आईसीएसआई तकनीक की मदद लेंगे। इस प्रक्रिया में हर एक अंडे को हर एक स्पर्म के साथ फर्टिलाइज किया जाता है।
कई मामलों में सीमेन क्वालिटी अच्छी नहीं होने पर, डोनर स्पर्म की जरूरत पड़ सकती है।
उर्वरित (fertilise) हो चुके अंडे को 48 घंटे के लिए इनक्यूबेटर में रखा जाएगा और डॉक्टर महिला को फर्टिलाइजेशन के परिणाम के बारे में सूचित करेंगे।
चरण 5 – एम्ब्र्यो सेलेकशन
वैसे तो आईवीएफ का प्रत्येक चरण महत्वपूर्ण है, लेकिन यह चरण कुछ अधिक महत्वपूर्ण है।
आमतौर पर मिसकैरेज से बचने के लिए एक स्वस्थ भ्रूण का चयन करना बहुत आवश्यक है। एम्ब्र्योलॉजीस्ट भ्रूण का चयन दो तरह से कर सकते हैं-
- विजुअल असेसमेंट – भ्रूण में कोशिकाओं के विकास और ब्लास्टोमेरेस को माइक्रोस्कोप की मदद से देखा जाता है।
- जेनेटिक एनालिसिस – इसमें क्रोमोसोम मेकअप को ट्रैक किया जाता है।
भ्रूण में किसी भी क्रोमोसोम के असंतुलन से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है और इससे गर्भधारण संबंधी जटिलताएं हो सकती हैं। इसके अलावा यदि महिला बच्चे को सफलतापूर्वक जन्म दे भी देती है तो बच्चे में असामान्यताएं हो सकती हैं।
एम्ब्र्यो सिलेक्शन के बाद नर्स महिला को फोन लगाकर एम्ब्र्यो ट्रांसफर के लिए क्लीनिक में बुलाएंगे।
चरण 6 – एम्ब्र्यो ट्रांसफर
यह आईवीएफ प्रक्रिया का अंतिम चरण है,जो निम्नलिखित स्टेप्स में पूरा होता है:
- महिला लिथोटॉमी पोजीशन में लेट जाती है।
- अब कैथेटर को योनि मार्ग से गर्भाशय में ले जाते हैं (कैथेटर एक पतली ट्यूब है)
- अब सिरेन्ज की मदद से डॉक्टर भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित कर देते हैं।
मल्टीपल प्रेगनेंसी और जटिलताओं से बचने के लिए एक भ्रूण स्थानांतरण काफी होता है, लेकिन कई मामलों में यदि महिला की आईवीएफ साइकिल फेल हो चुकी है या गर्भवती होने की संभावना कम है तो दो गर्भाशय में दो भ्रूण भेजे जा सकते हैं।
एम्ब्र्यो ट्रांसफर के बाद डॉक्टर महिला को कुछ देर तक क्लीनिक में रहने को कहेंगे, फिर घर भेज देंगे।